Saturday, June 20, 2009

व्यंग तरंग

गुलामी की भाषा, लुटेरों व आक्रान्ताओं की भाषा, भारत और भारतीयता को मिटाने वाली भाषा में मताधिकार भी मांगिये।
भू त्यागी भारतीय
धोखा ही देना है तो पूरा दीजिए।नई लोकसभा बन गई थी। नए सांसद शपथ ले रहे थे। वैसे तो संविधान में मान्यता प्राप्त किसी भी भाषा में सांसद शपथ ले सकते हैं लेकिन हमारे कुछ सांसद गुलामी की भाषा, आक्रान्ताओं की भाषा, भारत और भारतीयता को मिटाने वाली भाषा अंग्रेजी में शपथ क्यों लेते हैं, यह आज तक मुझे समझ में नहीं आया। वैसे तो संविधान में मान्यता प्राप्त भाषाओं में क्रूर व आक्रान्ताओं की भाषा को शामिल करके हमारे अंग्रेजों के पिट्ठू नेताओ ने भारत के भोले भाले लोगो के साथ महाधोखा किया था। जो आज भी जारी है। शायद मेरी बुद्धि कुछ मोटी है। क्यांेकि मेरी समझ में आज तक ये भी नहीं आया कि अगर अंग्रेजी भाषा एवं संस्कृति से हमारे नेताओं को इतना ही प्यार था, तो करोड़ो बलिदान देकर उन्हे भारत से भगाने की आवश्यकता ही क्या थी। यह ठीक है कि संस्कृत देवभाषा है, वैज्ञानिक भाषा है, देवता कहीं अगर होते होंगे तो वे अवश्य संस्कृत में बोलते, सोचते होंगे! लेकिन प्रश्न यह है कि कोई भी नेता इस भाषा को बचाने का प्रयास तक नही करता। वोट मांगने के लिए तो सबको हिंदी, बंगला, मराठी, तमिल, उड़िया, पंजाबी आदि भाषाएं ही याद आती हैं। अरे मताधिकार भी तो वे अंग्रेजी में ही मांगते! इसी प्रकार का निवेदन माननीय वीरभद्र सिंह और फारूख अब्दुला से भी है। उन्हें भी अंग्रेजी में ही वोट मांगने चाहिए जिसमें उन्होंने लोकसभा में शपथ ली है। वे पुराने नेता हैं, अपने-अपने राज्यों में प्रतिष्ठित हैं, उन्हें भी लाख-पचास हजार वोट तो मिल ही जाएंगे! महाशयों, इस देश के गौरव को बचाने के लिए कुछ तो नया कीजिए, कभी तो स्वाभिमान से जीना सीखो। या घिनौनी एवं विखण्डन की राजनीति ही करते रहेंगे! अंग्रेजों के सपनो का इंडिया ही बनाते रहोगे या भारतीय बलिदानियों के भारत के लिए भी कभी जीवन में सोच पाओगे या जनता के जूते के बिना समझ नही आएगा। जनता ये जिस दिन जागेगी, दौड़ा-दौड़ा कर मारेगी। तो शीघ्रता से आइए और इस दिशा में आगे बढ़िए! नही तो .......

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