तरंग दूरदर्शन
सत्य का दर्पण
Saturday, January 15, 2011
Sunday, October 4, 2009
भारत को अभी सच्ची स्वतन्त्रता की लडाई लड़नी शेष है
भारत को तो अभी सच्ची स्वतन्त्रता की लडाई लड़नी शेष है,
वो भी अपने लालची, स्वार्थी, सत्ता का भूखे नेताओं से अभी तो अंग्रेजी नियमों को उनके बचे कार्यो को स्वदेशी स्वार्थी नेता पूर्ण कर रहे है, स्वतन्त्र भारत का सपना टूटने से पहले हमे सचेत रहकर शीघ्र, अतिशीघ्र, तीव्र- अति तीव्र गति से तूफानी आन्दोलन करना पड़ेगा नही तो भारत की शक्ति का दुरुपयोग करके विश्व आनन्द लेने को तैयार है हर नागरिक को मानना होगा कि हम सर्वोत्तम है, और मै ही अकेला अपने भारत को सर्वोच्च शिखर पर पहँुचा सकता हूँ। मेरा धर्म-भारतीय, मेरा कर्म-भारत सेवा, मेरी जाति-भारतीय, हम ही विश्व के रक्षक है, क्योकि हम सबसे महान राष्ट्र के निवासी है, मैं भारतवीर हूँ।
अंग्रेजों का षड़यन्त्र सफल हो रहा है
अंग्रेजों का षड़यन्त्र सफल हो रहा है
योजनाबद्ध तरीके से अंग्रेजो ने जैसा चाहा था वैसा ही इन्डिया बना जनरल डायर व अन्य अंग्रेजों की आत्मा स्वर्ग मे है या नरक में ये तो मालूम नही लेकिन अमर बलिदानी भारत वीरो की आत्मा अवश्य कराह रही है। आज जिसे हम स्वतन्त्र भारत कह रहे है वो परतन्त्र/पराधीन इंडिया है। जिसे अशिक्षित, लाचार, असंगठित रखने भरपूर प्रयास अंग्रेजों ने किया था। या सारे अंग्रेज बन जाये।
भारत को भारत रहने दो इन्ड़िया ना बनाओ
भारत को भारत रहने दो इन्ड़िया ना बनाओ
कटु सत्य
प्यारे भारतवासी बन्धुवरों, सर्वप्रथम हमें ये ज्ञात होना चाहिए कि मेरे राष्ट्र का, मेरे देश का नाम क्या है। और स्मरण रहे कि नाम किसी भी भाषा में पुकारा जाए उच्चारण एक जैसा ही होगा।जरा सोचिए जिसे हम स्वतन्त्र भारत कह रहे है वो इंडिया क्यो और कैसे हुआ एक राष्ट्र के दो नाम कैसे हो सकते है। और यहाँ तो तीसरा भी है।जरा सोचिए........अगर हिन्दी में कोई नाम मनमोहन सिंह है तो अंग्रेजी में चमगादड़ का सींग हो जाएगा क्या? इसी तरह ..... सोनिया गाँधी है तो क्या अंग्रेजी में ‘‘चाचिया जाली कहेंगे? अटल बिहारी वाजपेयी को विकट बाजारी चालबाज कहेंगे क्या? ए।पी।जे। अब्दुल कलाम को एस।पी.जी. गुलाम कहेंगे क्या? भैरोसिंह शेखावत को खैरौ चन्द बिलावत कहेंगे क्या? लाल कृष्ण अडवानी को काला कोआ गिडगिडानी कहेंगे क्या?, शीला दीक्षित को केला भीक्षित, अर्जुन सिंह को दुर्याेधन सिंह, मुलायम सिंह यादव को कठोर गीदड़ भादव कहेंगे क्या? राम विलास पासवान को भोगविलासी कहेंगे क्या? लालू प्रसाद यादव को हरा प्रसाद चाराघोटाला कहेंगे क्या? राबड़ी देवी को कबाड़ी बेबी, वृन्दा करात को कृष्ण की बारात, बाला साहब ठाकरे को मराठी खब्ती कहेंगे क्या? ओम प्रकाश चैटाला को अन्धकार घोटाला, नटवर सिंह को नटखट सींग कहेंगे क्या?
Sunday, August 30, 2009
जय भारत,
महिला शक्ति भारत की ही नही वरन् समस्त विश्व की शक्ति है। भारतीय महिला परिवार का उद्देश्य महिलाओं को आदर और सम्मान दिलाना है और उनकी सभी समस्याओं का हर संभव निवारण करना हमारा परम कर्त्वय है। भारतीय महिला परिवार एक सशक्त परिवार बनने की ओर अग्रसर है। इसकी नींव में भारतीय संस्कृति की छाप है। यह महिलाओं की समस्याओं को उजागर करता है और उसकी समस्या का समाधान भी करता है। आज भारत की प्रत्येक महिला किसी न किसी तरह पीड़ित है। भारतीय महिला परिवार महिलाओं द्वारा ही महिलाओं की सभी तरह की समस्याओं (जैसे आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, जीविकोपार्जन, शोशण, प्रताड़ना, ) का समाधान करने का प्रयास करता है। समस्त महिला इससे जुड़कर गौरव का अनुभव करें हम ऐसा प्रयास कर रहे है। वो अबला नहीं है, नारी कभी अबला नहीं हो सकती क्योंकि वो ही पुरूष की जननी है। वीर पुरूशों की जननी भला अबला कैसे हो सकती है? महिला शक्ति राष्ट्र की शक्ति है महिलाओं का आदर करना चाहिए। सदैव उसके स्वाभिमान की रक्षा करना केवल पुरूष का ही धर्म नही वरन् हम महिलाओं का भी बराबर का है। भावना त्यागी भारतीय
प्रस्तुतकर्ता bhartiyamahilaparivar पर 3:48 AM 0 टिप्पणियाँ
Sunday, May 24, 2009
अत्यन्त दुःख हुआजब विजय के बाद कांग्रेस अध्यक्षा एवं प्रधानमंत्री ने जनता को धन्यवाद गुलामी की भाषा अंग्रेजी में ..दिया । नेता अपनी राष्ट्र भाषा में कब बोलना सीखेंगे या किसी जूते की प्रतीक्षा है
Saturday, June 20, 2009
व्यंग तरंग
भू त्यागी भारतीय
गुलामी की भाषा, लुटेरों व आक्रान्ताओं की भाषा, भारत और भारतीयता को मिटाने वाली भाषा में मताधिकार भी मांगिये।
धोखा ही देना है तो पूरा दीजिए। नई लोकसभा बन गई थी। नए सांसद शपथ ले रहे थे। वैसे तो संविधान में मान्यता प्राप्त किसी भी भाषा में सांसद शपथ ले सकते हैं लेकिन हमारे कुछ सांसद गुलामी की भाषा, आक्रान्ताओं की भाषा, भारत और भारतीयता को मिटाने वाली भाषा अंग्रेजी में शपथ क्यों लेते हैं, यह आज तक मुझे समझ में नहीं आया। वैसे तो संविधान में मान्यता प्राप्त भाषाओं में क्रूर व आक्रान्ताओं की भाषा को शामिल करके हमारे अंग्रेजों के पिट्ठू नेताओ ने भारत के भोले भाले लोगो के साथ महाधोखा किया था। जो आज भी जारी है। शायद मेरी बुद्धि कुछ मोटी है। क्यांेकि मेरी समझ में आज तक ये भी नहीं आया कि अगर अंग्रेजी भाषा एवं संस्कृति से हमारे नेताओं को इतना ही प्यार था, तो करोड़ो बलिदान देकर उन्हे भारत से भगाने की आवश्यकता ही क्या थी। यह ठीक है कि संस्कृत देवभाषा है, वैज्ञानिक भाषा है, देवता कहीं अगर होते होंगे तो वे अवश्य संस्कृत में बोलते, सोचते होंगे! लेकिन प्रश्न यह है कि कोई भी नेता इस भाषा को बचाने का प्रयास तक नही करता। वोट मांगने के लिए तो सबको हिंदी, बंगला, मराठी, तमिल, उड़िया, पंजाबी आदि भाषाएं ही याद आती हैं। अरे मताधिकार भी तो वे अंग्रेजी में ही मांगते! इसी प्रकार का निवेदन माननीय वीरभद्र सिंह और फारूख अब्दुला से भी है। उन्हें भी अंग्रेजी में ही वोट मांगने चाहिए जिसमें उन्होंने लोकसभा में शपथ ली है। वे पुराने नेता हैं, अपने-अपने राज्यों में प्रतिष्ठित हैं, उन्हें भी लाख-पचास हजार वोट तो मिल ही जाएंगे! महाशयों, इस देश के गौरव को बचाने के लिए कुछ तो नया कीजिए, कभी तो स्वाभिमान से जीना सीखो। या घिनौनी एवं विखण्डन की राजनीति ही करते रहेंगे! अंग्रेजों के सपनो का इंडिया ही बनाते रहोगे या भारतीय बलिदानियों के भारत के लिए भी कभी जीवन में सोच पाओगे या जनता के जूते के बिना समझ नही आएगा। जनता ये जिस दिन जागेगी, दौड़ा-दौड़ा कर मारेगी। तो शीघ्रता से आइए और इस दिशा में आगे बढ़िए! नही तो .......
व्यंग तरंग
गुलामी की भाषा, लुटेरों व आक्रान्ताओं की भाषा, भारत और भारतीयता को मिटाने वाली भाषा में मताधिकार भी मांगिये।
भू त्यागी भारतीय
धोखा ही देना है तो पूरा दीजिए।नई लोकसभा बन गई थी। नए सांसद शपथ ले रहे थे। वैसे तो संविधान में मान्यता प्राप्त किसी भी भाषा में सांसद शपथ ले सकते हैं लेकिन हमारे कुछ सांसद गुलामी की भाषा, आक्रान्ताओं की भाषा, भारत और भारतीयता को मिटाने वाली भाषा अंग्रेजी में शपथ क्यों लेते हैं, यह आज तक मुझे समझ में नहीं आया। वैसे तो संविधान में मान्यता प्राप्त भाषाओं में क्रूर व आक्रान्ताओं की भाषा को शामिल करके हमारे अंग्रेजों के पिट्ठू नेताओ ने भारत के भोले भाले लोगो के साथ महाधोखा किया था। जो आज भी जारी है। शायद मेरी बुद्धि कुछ मोटी है। क्यांेकि मेरी समझ में आज तक ये भी नहीं आया कि अगर अंग्रेजी भाषा एवं संस्कृति से हमारे नेताओं को इतना ही प्यार था, तो करोड़ो बलिदान देकर उन्हे भारत से भगाने की आवश्यकता ही क्या थी। यह ठीक है कि संस्कृत देवभाषा है, वैज्ञानिक भाषा है, देवता कहीं अगर होते होंगे तो वे अवश्य संस्कृत में बोलते, सोचते होंगे! लेकिन प्रश्न यह है कि कोई भी नेता इस भाषा को बचाने का प्रयास तक नही करता। वोट मांगने के लिए तो सबको हिंदी, बंगला, मराठी, तमिल, उड़िया, पंजाबी आदि भाषाएं ही याद आती हैं। अरे मताधिकार भी तो वे अंग्रेजी में ही मांगते! इसी प्रकार का निवेदन माननीय वीरभद्र सिंह और फारूख अब्दुला से भी है। उन्हें भी अंग्रेजी में ही वोट मांगने चाहिए जिसमें उन्होंने लोकसभा में शपथ ली है। वे पुराने नेता हैं, अपने-अपने राज्यों में प्रतिष्ठित हैं, उन्हें भी लाख-पचास हजार वोट तो मिल ही जाएंगे! महाशयों, इस देश के गौरव को बचाने के लिए कुछ तो नया कीजिए, कभी तो स्वाभिमान से जीना सीखो। या घिनौनी एवं विखण्डन की राजनीति ही करते रहेंगे! अंग्रेजों के सपनो का इंडिया ही बनाते रहोगे या भारतीय बलिदानियों के भारत के लिए भी कभी जीवन में सोच पाओगे या जनता के जूते के बिना समझ नही आएगा। जनता ये जिस दिन जागेगी, दौड़ा-दौड़ा कर मारेगी। तो शीघ्रता से आइए और इस दिशा में आगे बढ़िए! नही तो .......